Quantcast
Channel: Jhabua News Latest Hindi News Jhabua Samachar
Viewing all articles
Browse latest Browse all 2342

30 जून से 9 दिनों तक गुप्त नवरात्री में की जावेगी मां आद्याशक्ति की पुजा

$
0
0

गुप्त नवरात्री में  मां शक्ति की उपासना नवरात्रि के रूप में की जाती हैे- पण्डित द्विजेन्द्र व्यास

झाबुआ ।इस साल आषाढ़ महीने में गुप्त नवरात्रि की शुरुआत 30 जून 2022 से हो चुकी है,जिसका समापन 8 जुलाई 2022 को होगा। उक्त जानकारी देते हुए ज्योतिषाचार्य पण्डित द्विजेन्द्र व्यास ने बताया कि गुप्त नवरात्री में  मां शक्ति की उपासना नवरात्रि के रूप में की जाती है ।’नवरात्रि का व्रत धन-धान्य प्रदान करनेवाला, आयु एवं आरोग्यवर्धक है। शत्रुओं का दमन व बल की वृद्धि करनेवाला है ।’गुप्त नवरात्रि के नौ दिन महाविद्याओं की खास साधना की जाती है । नवरात्रि माँ भगवती की आराधना का पर्व है। ऐसी मान्यता है कि नवरात्रि में माँ  के नौ रूपों की भक्ति करने से हर मनोकामना पूरी होती है।’
     उन्होने बताया कि  1 साल में 4 बार नवरात्रि का त्यौहार मनाया जाता है, 2 नवरात्रि गुप्त होती हैं और 2 सामान्य होती है, 2 गुप्त नवरात्रि माघ और आषाढ़ मास में आती हैं और  2 सामान्य नवरात्रि आश्विन मास और चैत्र मास में आती है।’ जबकि गुप्त नवरात्रि में साधक महाविद्याओं के लिए खास साधना करते हैं, इन नौ दिनों में माँ दुर्गा ,माँ काली, तारा देवी, त्रिपुरा सुंदरी, भुवनेश्वरी, माता छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, माँ धुमावती, माँ  बगलामुखी, मातंगी और कमला देवी आदि शक्तियों की पूजा उपासना की जाती हैं ।
 श्री व्यास ने बताया कि नवरात्र के प्रथम दिन धुव्र योग, व्याघात योग बन रहे है,वहीं मेष, कर्क, तुला और मकर राशि वालों जातकों के लिए रूचक योग तथा वृषभ, कन्या, वृश्चिक और कुंभ राशि वालों के लिए शश योग,साथ ही मिथुन, कन्या, धनु और मीन राशि वालों के लिए हंस एवं मालव्य योग रहेगा। इस योग में धार्मिक कार्य करना और नवीन संबंधों का आरंभ करना फायदेमंद होता है. मेल-मिलाप बढ़ाने के लिए, विवाद निबटाने, समझौता करने, रूठे लोगों को मनाने के लिए या संबंधों को मजबूत करने के लिए ये योग शुभ माने गए है। इतना ही नहीं इस योग में किए गए कार्यों में सफलता मिलती है और मान-सम्मान में वृद्धि होती है।’
श्री व्यास के अनुसार घट स्थापना सुबह जल्दी स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहनें, फिर पूर्व दिशा में एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछा कर माँ दुर्गा की प्रतिमा को गुलाब की पत्तियों के आसन पर स्थापित करें, माँ  को लाल चुनरी पहनाएं,अब मिट्टी के बर्तन में जौ के बीज बोएं और नवमी तक पानी का छिड़काव करें। शुभ मुहूर्त में कलश को गंगा जल से भरें, उसके मुख पर आम की पत्तियां लगाएं और उस पर नारियल रखें,कलश को लाल कपड़े से लपेटकर उसके ऊपर मौली बांधें,अब इसे मिट्टी के बर्तन के पास रख दें. घी की ज्योति लगाएं,कपूर अगरबत्ती की धूप करें और भोग लगाएं,नौ दिनों तक  दुर्गा मंत्र ओम् जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी। दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।। की एक माला का जाप करें और माता के सम्मुख हाथ जोड़, उनका अपने घर में स्वागत करें व उनसे सुख-समृद्धि की कामना करें।’

श्री व्यास बताते है कि गुप्त नवरात्रि के दौरान किसी भी एक रात्रि को माँ दुर्गा की पूजा करें, माँ दुर्गा की प्रतिमा या मूर्ति स्थापित कर लाल रंग का सिंदूर और चुनरी अर्पित करें, इसके बाद माँ दुर्गा के चरणों में लाल पुष्प अर्पित करें,अब सरसों के तेल से दीपक जलाकर दुर्गा मंत्र या गुरु मंत्र का जप करना चाहिए।नवरात्रि महिषासुर मर्दिनी माँ दुर्गा का त्यौहार है । जिनकी स्तुति कुछ इस प्रकार की गई है।’
सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।’
’शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते ।।’
’अर्थात सर्व मंगल वस्तुओं में मंगलरूप, कल्याणदायिनी, सर्व पुरुषार्थ साध्य करानेवाली, शरणागतों का रक्षण करनेवाली, हे त्रिनयने, गौरी, नारायणी ! आपको मेरा नमस्कार है । मंगलरूप त्रिनयना नारायणी अर्थात माँ  जगदंबा ! जिन्हें आदिशक्ति, पराशक्ति, महामाया, काली, त्रिपुरसुंदरी इत्यादि विविध नामों से सभी जानते हैं । जहां पर गति नहीं वहां सृष्टि की प्रक्रिया ही थम जाती है । ऐसा होते हुए भी अष्ट दिशाओं के अंतर्गत जगत की उत्पत्ति, लालन-पालन एवं संवर्धन के लिए एक प्रकार की शक्ति कार्यरत रहती है । इसी शक्ति को आद्याशक्ति कहते हैं । उत्पत्ति-स्थिति-लय यह शक्ति का गुणधर्म ही है । शक्ति का उद्गम स्पंदनों के रूप में होता है । उत्पत्ति-स्थिति-लय का चक्र निरंतर चलता ही रहता है ।’श्री व्यास ने बताया कि श्री दुर्गासप्तशतीके अनुसार श्री दुर्गा देवी के तीन प्रमुख रूप हैं,’महासरस्वती, जो ‘गति’ तत्त्व का प्रतीक हैं ।’ महालक्ष्मी, जो ‘दिक’ अर्थात ‘दिशा’ तत्त्व का प्रतीक हैं ।’महाकाली जो ‘काल’ तत्त्व का प्रतीक हैं ।’
      नवरात्रि’ किसे कहते हैं ?’के बारे में उन्होने बताया कि नव अर्थात प्रत्यक्षतः ईश्वरीय कार्य करनेवाला ब्रह्मांड में विद्यमान आदिशक्तिस्वरूप तत्त्व । स्थूल जगत की दृष्टि से रात्रि का अर्थ है, प्रत्यक्ष तेजतत्त्वात्मक प्रकाश का अभाव तथा ब्रह्मांड की दृष्टि से रात्रि का अर्थ है, संपूर्ण ब्रह्मांड में ईश्वरीय तेज का प्रक्षेपण करने वाले मूल पुरुषतत्त्व का अकार्यरत होने की कालावधि । जिस कालावधि में ब्रह्मांड में शिवतत्त्व की मात्रा एवं उसका कार्य घटता है एवं शिवतत्त्व के कार्यकारी स्वरूप की अर्थात शक्ति की मात्रा एवं उसका कार्य अधिक होता है, उस कालावधि को ‘नवरात्रि’ कहते हैं ।’ मातृभाव एवं वात्सल्य भाव की अनुभूति देनेवाली, प्रीति एवं व्यापकता, इन गुणों के सर्वाेच्च स्तर के दर्शन कराने वाली जगदोद्धारिणी, जगत का पालन करने वाली इस शक्ति की उपासना, व्रत एवं उत्सव के रूप में की जाती है ।’
नवरात्रि का अध्यात्मशास्त्रीय महत्त्व’ के बारे मे उन्होने बताया कि जग में जब-जब तामसी, आसुरी एवं क्रूर लोग प्रबल होकर, सात्त्विक, उदारात्मक एवं धर्मनिष्ठ सज्जनों को छलते हैं, तब देवी धर्मसंस्थापना हेतु पुनः-पुनः अवतार धारण करती हैं । उनके निमित्त से यह व्रत है । नवरात्रि में देवीतत्त्व अन्य दिनों की तुलना में 1000 गुना अधिक कार्यरत होता है । देवीतत्त्व का अत्यधिक लाभ लेने के लिए नवरात्रि की कालावधिमें ‘श्री दुर्गादेव्यै नमः ।’ नाम जप अधिकाधिक करना चाहिए ।’ माँ भगवती के इन नवरात्रि के दिनों में आपका जप,तप बढ़े और माँ दुर्गा आपका को सत्प्रेरणा दे और आप इन दिनों में  जीवन के सर्वांगीण विकास के लिए दृढ़ संकल्प करो और उन्नति के शिखर को प्राप्त करो।’

Viewing all articles
Browse latest Browse all 2342

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>