मंडी अपनी बदहाली पर बहा रही आॅसु
* निर्मल पंड्या/ राणापुर:-मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री जहा एक ओर पुनः कृषि कमर्ण पुरस्कार लेकर फुले नहीं समा रहे है वही राणापुर विकासखंड में किसानों की बदहाली का आलम यह हे कि उन्हें उनकी फसलों के उचित दाम नहीं मिलने के चलते सरकारी गेहु खरीदी केन्द्रों से दुरी बना ली हैं। विगत कई दिनों के बावजुद इन केन्द्रों पर जस के तस हालात बने हुए किसानों द्वारा बाजार में ही अपने गेहु बैचे जा रहे हैं। आखिर प्रदेश का मुखिया जिन किसानों के दम पर अवार्ड जीत रहे है उन्हें ही अपने अधिकारों के लिए स्वयं संधर्ष करना पड रहा है। विकासखंड स्थित एकमात्र कृषि उपज मंडी अपनी बदहाली पर स्वयं आॅसु बहा रही हैं।
सरकार द्वारा कागजों पर करोडों खर्च होने के बावजुद कृषि उपज उप मंडी अपने अस्तित्व के लिए लडाई लड रही हैं। जहा करोडों की कीमत रखती मंडी की जमीन पर बेतहाशा अतिक्रमण के बाद, निर्माण के नाम पर करोडों के भ्रष्टाचार झेल चुकी मंडी पर एक बार पुनः निर्माण कार्य कराया जा रहा हैं। मंडी की बदहाली का आलम यह हे कि इसके गोडाउन का इस्तेमाल शौचालय के रूप में किया जा रहा हैं।
नदारद किसान, कागजों पर चल रही मंडी
कई वर्षो पुर्व निर्मित भवन खंडहर हो चुके है जिस पर कागजों पर चल रही कृषि उप उपज मंडी। मंडी में निर्माण के बाद से एक भी कृषक ने कभी अपनी उपज के दाम प्राप्त किए होगे। कृषि उपज मंडी में किए निर्माण कार्यो पर शासन द्वारा जांच करवाई जाए तो कागजी भ्रष्टाचार का जिन्न अपने आप बोतल से बाहर खडा हो जाऐगा। मंडी के अभाव में किसानों को बाजार में व्यापारीयों द्वारा मनमर्जी से ठगा जाता है साथ ही मंडी कर्मचारियों को इन रसुखदारों के यहा पर बैठे देखा जा सकता हैं।
भुले जनप्रतिनिधि कृषकों को
जिनके दम पर जनप्रतिनिधि अपनी राजनीतिक रोटियाॅ सेकने में लगे है उन्हे ही इन जनप्रतिनिधियों द्वारा वर्तमान में भुला दिया गया। मंडी से जुडे कई नेता एवं स्वंय अध्यक्ष भी कृषक परिवार से होने के बावजुद इनके कार्यकाल में मंडी को उद्धार नहीं करवा पाए। जनप्रतिनिधियों की उदासिनता का खामियाजा कृषक उठा रहे है जिनके चलते उन्हें अपनी उपज ओनपोन दामों पर बाजार में व्यापारीयों के यहा पर बैचना पड रही है।
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खस्ताहाल मंडी भवन |