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फरियादी को मिथ्या साक्ष्य देना महंगा पडा सत्र न्यायालय ने दिये परिवाद प्रस्तृत किये जाने के निर्देश

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झाबुआ : सत्र न्यायालय झाबुआ के अधिष्ठाता सत्र न्यायाधीश, श्री श्यामकांत कुलकर्णी, द्वारा सत्र प्रकरण क्रमांक-15/2017 में 1 मई 2017 को पारित निर्णय अनुसार बाबेल कम्पांउड, झाबुआ निवासी अर्जुनसिंह पिता गोमतसिंह नायक, आयु-36 वर्ष को भारतीय दण्ड संहिता की धारा-392 के अधीन आरोप से दोषमुक्त किया गया किन्तु प्रकरण से संबंधित फरियादी अजमलसिंह पिता डोंगरसिंह, निवासी माछलिया झीर को न्यायालय में मिथ्या कथन करने के कारण धारा-191, 193 भा.द.वि. के तहत परिवाद प्रस्तुत किये जाने के निर्देश देते हुए परिवाद प्रस्तुत किये जाने हेतु न्यायालय के अधिकारी श्री कंुवरसिंह खपेड को अधिकृत किया गया। न्यायालय का यह निर्णय 17 दिसम्बर 2016 को बहुचर्चित घटनाक्रम ग्राम कागझर रानापुर रोड पर फरियादी अजलमसिंह पिता डोंगरसिंह के आधिपत्य से 18000 रूपये की लूट कारित करने के संबंध में आया है।
उक्त प्रकरण में न्यायाधीश ने अपने निर्णय में लोक अभियोजक श्री मानसिंह भूरिया की ओर से किये गये सारगर्भित तर्क का उल्लेख किया जिसमें न्यायालय द्वारा पीडित, अभियुक्त को न्याय दान प्रदान किया जाता है और इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि कोई व्यक्ति अपने स्वार्थ के कारण न्याय प्रक्रिया के साथ खिलवाड नहीं करे। 
Instructions-for-giving-false-evidence-to-prosecution-फरियादी को मिथ्या साक्ष्य देना महंगा पडा सत्र न्यायालय ने दिये परिवाद प्रस्तृत किये जाने के निर्देश        इस प्रकरण में फरियादी द्वारा लूट की गंभीर घटना की रिपोर्ट नामजद होमगार्ड सैनिक अर्जुनसिंह के विरूद्ध करायी जाती है, उस पर उसके हस्ताक्षर होते है और रूपये उसी नोटो की मुद्रा में अभियुक्त से जप्त होते है लेकिन न्यायालय में आकर अभियुक्त द्वारा फरियादी अजमेरसिंह उसके साथ हुई लूट की घटना से इंकार कर देता है, फरियादी अभियुक्त अर्जुनसिंह को पहचानने से भी इंकार कर देता है व साक्षी केवना लूट की घटना के समय उपस्थित होने से भी इंकार कर देता है, जबकि अजमेरसिंह अपने साक्ष्य में घटना के समय केवना की उपस्थिति बताता है और यह भी बताता है कि उसके पास घटना के समय 18,000 रूपये तो थे, लेकिन लूटे नहीं गये और इसके विपरित मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालय में एक आवेदन पेश कर 18000 रूपये लूटे जाने व अभियुक्त से जप्त होने की बात कर स्वयं को सुपुर्दनामें पर देने की बात कहता है, 
        इन सारी स्थितियों से स्पष्ट है कि फरियादी अजमेरसिंह ने घटना और तथ्यों की सारी जानकारी होते हुए भी न्यायालय के समक्ष साक्ष्य के दौरान शपथ पर सत्य कथन करने के लिये आबद्ध होते हुए भी ऐसी साक्ष्य दिये, जबकि उसे मालुम था कि वह मिथ्या साक्ष्य है, संबंधी तर्क के परिप्रेक्ष्य में फरियादी के विरूद्ध धारा-191, 193 भ.दं.वि. के तहत कार्यवाही करने संबंधी महत्वपूर्ण निर्णय पारित करते हुए अपराध में जप्त 18000 रूपये शासन मद में राजसात किये जाने तथा अपराध में जप्त मोटरसायकल जिसके संबंध में अभियुक्त अर्जूनसिंह द्वारा सुपूर्दनामा का आवेदन दिया गया था, के बारे में उसने न तो कोई रजिस्ट्रेशन कार्ड पेश किया और न ही क्रय की कोई रसीद पेश की और बाद में बिल न देने के कारण आवेदन निरस्त करा लिया। ऐसी स्थिति में 06 माह में कथित मोटरसायकल के संबंध में अभियुक्त द्वारा या कोई भी व्यक्ति अपने स्वामित्व का प्रमाण पेश करें तो उसे वाहन सुपुर्दनामे पर दिया जावे, अन्यथा मोटरसायकल का निराकरण माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सुदंरलाल देसाई वाले मामले के अनुसार किया जावे। 
न्यायाधीश द्वारा अपने निर्णय में उल्लेखित किया गया कि इस बात का उल्लेख अवश्य करना चाहुंगा कि अभियुक्त होम गार्ड सैनिक है जो कि बल का सदस्य है और इसकी नेैतिकता एवं निष्ठा संदेह के परे होना चाहिए, इस लिए न्याय दृष्टांत कमिश्नर आॅफ पुलिस, नई दिल्ली व अन्य विरूद्ध मेहरसिंह तथा कमिश्नर आफ पुलिस, नई दिल्ली विरूद्ध शनिकुमार में माननीय सर्वोच्च न्यायालय के न्याय दृष्टांत का उल्लेख करते हुए परिभाषित किया कि इस मामले में भले ही अभियुक्त अर्जूनसिंह को संदेह का लाभ देते हुए दोषमुक्त किया गया, तब भी इसे सम्मानजनक दोषमुक्ति नहीं कहा जावेगा, इस लिये निर्णय की सूचना जिला कमांडेंट होमगार्ड, झाबुआ को इस निर्देश के साथ भेजी कि इस प्रकरण में माननीय सर्वोच्च न्यायालय के उपरोक्त न्याय दृष्टांत में दिये गये निर्णेय अनुसार विचार किया जावे।


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