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आचार्य देवेश की 21 दिवसीय सूरिमंत्र साधना जारी , 25 अक्टूम्बर को होगी साधना पूर्ण

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श्री संघ ने की सुक्ष्मबल उपहार देने की अपील
झाबुआ।परमपूज्य गच्छाधिपति ज्योतिष सम्राट जीवदया प्रेमी राष्ट्रसंत अष्टम पट्टधर आचार्य श्री ऋषभचंद्रसुरी जी महाराज अश्विन सुधी पूर्णीमा पर शरद पूर्णिमा के पावन संयोग में 5 अक्टूम्बर से सौभाग्य ज्ञान पंचमी 25 अक्टूम्बर तक श्री गौडीपाश्र्वनाथ मंदिर झाबुआ मे मौन व्रत सहित सुरि मंत्र आराधना में लीन रहेगे। चातुर्मास में आचार्य श्री की सुरीमंत्र की संम्यक साधना के बारे में जानकारी देते हुए मुनि श्री रजतचंद्रविजयजी म.सा. ने बताया कि सर्ववांछित को पूर्ण करने वाली अष्टलक्ष्मी में सर्वश्रेष्ट स्थान प्राप्त है। जिनको ऐसी महालक्ष्मी इह लोैकिक एवं पारलोैकिक बाह्य अभयंतर लक्ष्मी की वृद्धि कर मौक्ष रूपी लक्ष्मी को प्रदान करने वाली महालक्ष्मी की आराधना आचार्य देवेश सूरिमंत्र के अन्र्तगत कर रहे है। उक्त आराधना के शुभ पुण्यप्रभाव से जीव मात्रा को सुख शांति सौभाग्य एवं सिद्धी प्राप्त होती है। 
आचार्य देवेश की 21 दिवसीय सूरिमंत्र साधना जारी , 25 अक्टूम्बर को पूर्ण होगी साधना-Acharya-Devesh-will-continue-his-21-day-Suryamantra-complete-on-25th-of-October       इस कठिन मौन साधना में यंत्र संरचना होती है, जिसके मध्य भाग में गौतम स्वामी 11 गणधर अनुक्रम से 64 इंन्द्र ,16 विद्या देवी,24 यक्ष, 24 अधिष्ठायिका, 10 दिग्पाल,4 द्वारपाल, 4 विरपाल, 9 ग्रह एवं अष्टसिद्धी सभी सम्यक दृष्टि देवी देवताओं को यथोचित सम्मान सत्कार एवं पुजन होता है। इस सूर्य मंत्र की आराधना से संघ की उत्तरोत्तर उन्नती होती है और रोग , शोक , दरिद्रता , भय आदि का शमन होता है। सप्तभयों का निवारण कल्याण का कारक रूपधर के विष का निवारण अतिवृष्टि , अनावृष्टि आदि दोष के निवारण के साथ ही राजभय , चोराभय, मृत्युभय से निजात मिलती है।
           जैन शास्त्रों के अनुसार जिनेश्वर देव की अंजनशैली का प्रतिष्ठा के समय आचार्य देवेश द्वारा सूरि मंत्र से प्राण फुकें जाते है। जिससे प्रतिमा में परमात्मा का वास साक्षत रूप  से होता है। ओर लाखो करोडो लोगो की मनोकामनाएं दर्शन मात्र से शत प्रतिशत पुरी होती है। मुनिश्री के अनुसार गुरूदेव राजेन्द्रसुरीजी म.सा. ने चामुण्डा वन , मांगीतुगी पर्वत, जालौर दुर्ग आदि अन्य स्थानो पर सूर्य मंत्र की आराधना कर जीन शासन को विश्ववंदित बनाकर नई पहचान दी है।
    श्री संघ एवं चातुर्मास समिति ने आचार्य भगवंत ऋषभचंद्रसुरीजी म.सा. की सूरिमंत्र प्रथम पिठिका के 21 दिवसीय साधना निराबाध, निष्कंटक रूप  से पुरी हो एवं शासन प्रभावक की प्रभावकता फैले। इसी भावना से अपनी भक्ति का परिचय देने की अपील की है। श्रीसंघों व गुरूभक्तो को आचार्य श्री 25 अक्टूम्बर से दर्शन वंदन का लाभ देंगे। श्रीसंघ ने अपील की है कि पुज्य श्री की सुरी मंत्र साधना की अवधि में अधिकाधिक जपतप मौन स्वाध्याय आदि का नियम लेकर अपनी ओर से पुज्य गुरूदेव को सुक्ष्मबल का उपहार देने का निवेदन किया है।





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