झाबुआ : संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा घोषित विश्व आदिवासी दिवस डॉ. भीमराव अंबेडकर पार्क में मनाया गया। सभी राजनैतिक, धार्मिक, सामाजिक तथा कर्मचारी संगठन ने उपर उठकर यहां विश्व आदिवासी दिवस समारोह में राजनैति प्रतिनिधियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं ने तथा शासकीय कर्मचारियों के संगठन के प्रमुख ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया।
कार्यक्रम का शुभारंभ शहीद टंटीया मामा की प्रतिमा पर माल्यार्पण के साथ प्रारंभ हुआ। शहीद टंटीया मामा के माल्यार्पण में दोनों पार्टियों के आदिवासी प्रतिनिधि उपस्थित थे। इस अवसर पर पूर्व केन्द्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया ने कहा कि सबसे अच्छी बात यह है कि राजनीति तथा सभी संगठनों से उपर उठकर सभी मिलकर आदिवासी समाज की सेवा, आदिवासी संस्कृति की पहचान, अस्मिता एवं आत्मा सम्मान बनाए रखने के लिए यह दिवस मनाया जा रहा है।
उन्होंने कार्यक्रम की सराहना करते हुए ऐसे नवयुवको को निरूस्वार्थ सेवा के लिए बिना भोदभाव किए आगे आना चाहिए। माल्यार्पण समारोह पश्चात रैली निकाली गई जिसमें सभी ने भाग लिया। जुलूस बस स्टैंड से मुख्य बाजार होते हुए बाबेल चौराहा, राजवाड़ा, राजगढ़ नाका होते हुए सभा स्थल डॉ.भीमराव अंबेडकर पार्क पहुंचे जहां अनेक आदिवसी वक्ताओं ने अपने-अपने विचार व्यक्त किए जिसमें अनु भाबर ने आदिवासियों को अपनत्व की भावना से देखने का कार्य करने की बात कहीं उन्होंने साफ तौर पर कहा कि कई बड़े अधिकारी आदिवासी होकर भी आदिवासियों का कार्य करने से इन्कार कर देते है और अपने आपको आदिवासी कहलाने से शर्मिदगी महसूस करते है यह आदिवासियों के लिए अभिशाप है।
मंगला गरवान ने आदिवासी संस्कृति इसकी अस्मिता व आत्म सम्मान को बनाए रखने की बात कही। कल्याणसिंह डामोर ने कहा कि भारत की आजादी के लिए आदिवासी क्रांतिकारियों ने अपने आप को न्यौछावर कर दिया जबकि उनका कई वर्षो तक इतिहास के पन्नों पर नाम तक नही था, उन्होने टंटिया भील, अजयसिंह मुंडा, बिरसा मुंडा, रानी दुर्गावती आदि क्रांतिकारियों एवं शहीदों के नाम गिनाए।